निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता पर न उठे सवाल
भारत निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है।
भारत में आम चुनाव 2024 की घोषणा बजट सत्र के समाप्ति के बाद कभी भी हो सकती है। यह कार्य निर्वाचन आयोग का है कि वह वर्तमान लोकसभा का नियत कार्यकाल 5 वर्ष होने से पूर्व करा ले। जिससे कि नई सरकार का गठन समय से हो सके। चूंकि भारत निर्वाचन क्षेत्र की दृष्टि से बहुत बड़ा है जिससे लोकसभा के लिए कुल 543 सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाना है। इसके लिए आवश्यक धन और बहुत सारे कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी।
भारत में लोकतंत्रीय शासन प्रणाली है इसलिए आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग देश के अंदर स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से चुनाव सम्पन्न कराये। जिससे कि आम चुनाव में भाग लेने वाले सभी राजनीतिक दल एवं प्रतिनिधियों का चुनाव करने वाली जनता दोनों को यह भरोसा है कि चुनाव आयोग द्वारा पूरी निष्पक्षता से यह कार्य सम्पन्न हो। जब हम चुनावी स्वतंत्रता की बात करते है तो उसका आशय यही है कि जो भी व्यक्ति इस चुनाव का हिस्सा बने उसे इस बात का एहसास होना चाहिए कि देश के अंदर जो चुनाव हो रहा है निर्वाचन आयोग के तहत पूरी तरह से स्वतंत्र ढंग से हो रहा है।
किसी चुनाव के लिए दूसरी सबसे बड़ी बात जो कि निष्पक्षता है चुनाव आयोग एवं चुनाव सम्पन्न कराने में जितने भी केन्द्रीय एवं राज्य कर्मचारी भाग ले रहे है वे स्वयं को किसी पार्टी का उम्मीदवार न समझे बल्कि बूथ पर ऐसा प्रबंध करें कि उसकी निष्पक्षता पर कोई सवाल न खड़ा कर सके। ऐसा इसलिए कि वे प्रशासन का हिस्सा हैं न कि सरकार का, और सेवाकाल के दौरान न जाने कितनी सरकारें आयी होगी और आगे आयेगी।
अंतिम एवं महत्वपूर्ण बात पारदर्शिता की, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर बहुत सारे उपाय किये गये है। सन् 1952 के प्रथम आम चुनाव से लेकर अब तक पारदर्शिता के इन उपायों में फोटायुक्त पहचान पत्र, ई0वी0एम0, वी0वी0पैड, फोटो युक्त निर्वाचन नामावली जैसी व्यवस्था के बावजूद उसकी व्यवस्था एवं पारदर्शिता आलोचना की शिकार बनती है।
Rajesh Kumar
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